श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025 उत्सव – तिथि,जन्म कथा, महत्व, व्रत,पूजन विधि, भजन-कीर्तन

श्री कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण जी  के जन्म पर आधारित है। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में मामा कंस के कारागार में हुआ था, जहाँ उनके माता-पिता, देवकी और वसुदेव, को कैद किया गया था। श्रीकृष्ण ने जन्म लेकर कंस का विनाश किया और धरती पर धर्म की स्थापना की। यह दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक है और धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखता है। इस पृष्ठ पर आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी तिथि ,श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी , श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024 का महत्व, श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत, श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि , श्री कृष्ण भजन-कीर्तन तथा जन्माष्टमी के विशेष आयोजन के बारे मे जानकारी प्रस्तुत करवाएंगे।

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024 तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मानते है। इस तिथि पर मध्य रात्रि मे भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस बार यह 26 अगस्त 2024 दिन सोमवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाई जाएगी।

श्री कृष्ण जन्म कथा 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर आधारित है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है, जो भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

श्री कृष्ण जन्म  कथा ( Shree Krishna birth story) 

कंस, मथुरा का अत्याचारी राजा था, उसने अपनी  बहन देवकी और उसके पति वसुदेव को उसने जेल में बंद कर दिया था क्योंकि कंस को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका विनाश करेगा। इसलिए, उसने देवकी के हर नवजात शिशु को मारने का निर्णय लिया । भगवान विष्णु ने कंस के अत्याचारों से धरती को मुक्त करने के लिए देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेने का संकल्प लिया। जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो उनके पिता वसुदेव ने उन्हें यमुना नदी पार कर गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर पहुँचाया दिया।इस दौरान, सभी पहरेदार सो रहे थे और कंस की जेल के दरवाजे स्वतः ही खुल गए थे। 

श्री कृष्ण की बचपन की लीलाएँ:- 

श्रीकृष्ण ने गोकुल में बाल लीलाओं से सभी का मन मोह लिया। भगवान श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ मिलकर गांव वालों के मक्खन चुरा के खा जाते थे। अपने इसी नटखट अंदाज की वजह से उन्हे मां यशोदा से डांट भी खानी पड़ती थी। उनकी बाल लीलाओं के कारण वे “माखन चोर” और “नटखट नंदलाल” के नाम से प्रसिद्ध हुए।

गांव की गोपियों के साथ रासलीला:- 

भगवान श्री कृष्ण और राधा जी का रिश्ता बहुत ही खास था पर गांव की सभी गोपियां श्री कृष्ण जी के नटखट अंदाज की वजह से उन्हे पसंद करती थी। श्री कृष्ण की बसुरी की धुन राधा जी के साथ साथ सभी गोपियों को भी बहुत पसंद थी ।

बंशी के धुन पर कृष्ण राधा रासलीला किया करते थे । पूरे गांव मे उनकी रासलीला के खूब चर्चे थे। गांव की सभी गोपियां भी उनके साथ रासलीला करती थी। 

कालिया नाग का वध:- 

एक बार श्री कृष्ण अपने बड़े भाई और अपने मित्रो के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद से खेल रहे थे। एकाएक गेंद नदी m चली गई। श्री कृष्ण जी यमुना नदी मे गेंद लेने चले गए वहा उन्हे कालिया नाग मिला । भगवान श्री कृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ मिलकर कालिया नाग का वध किया । यह लीला उनकी प्रचलित बाल लीलाओं मे से एक है।

गोवर्धन पर्वत की कहानी:- 

भगवान श्री कृष्ण जी की गोवर्धन पर्वत की कहानी से हर कोई परिचित है । इंद्र देव भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से अंजान थे उन्होंने अहंकार वस गांव मे बहुत तेज वर्षा कर दी तब भगवान श्री कृष्ण ने गांव वालो को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिए और सातवें दिन वर्षा रुकने तक अपनी उंगली पर उठाए रहे। कार्तिक माह मे गोवर्धन पूजा (अन्नकूट पूजा) इसी घटना के बाद मनाई जाने लगी 

कंस का वध:-

कंस ने आकाशवाणी के बाद अपनी बाहें देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया था और निर्णय किया की उनके सभी संतान का वध वो स्वयं करेगा । जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था वासुदेव जी उनको मां यशोदा और नंद बाबा के पास छोड़ आए । श्री कृष्ण के बड़े होने तक कंस ने उन्हें मारने की बहुत योजनाएं बनाई पर वह विफल रहा। फिर उसने तय किया की वह श्री कृष्ण और बलराम को पहलवान से लड़ने का निमंत्रण भेजेगा । भगवान श्री कृष्ण ने उस पहलवान को मार दिया और कंस का भी वध किया। अपने माता पिता को कंस के कैद से मुक्त किया। इसके बाद, उन्होंने मथुरा के सिंहासन पर अधिकार किया और धर्म की स्थापना की।

महाभारत और गीता:-

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया और अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया, जिसमें कर्म, धर्म और भक्ति का महत्व बताया गया है। 

श्रीकृष्ण के जीवन की ये घटनाएँ उनके ईश्वरीय रूप और उनकी लीलाओं को प्रदर्शित करती हैं। जन्माष्टमी के दिन भक्तजन इन घटनाओं को स्मरण करते हैं और श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं।

H2 – श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है, जो भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।

धार्मिक महत्व:- 

श्रीकृष्ण का जन्म अत्याचारी राजा कंस के शासनकाल में हुआ था, जब अधर्म और अत्याचार चरम पर थे। भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेकर कंस का विनाश किया और धर्म की स्थापना की। उनके जीवन और शिक्षाओं ने धर्म, कर्म और भक्ति का संदेश दिया, जिसे भगवद गीता में वर्णित किया गया है। जन्माष्टमी का पर्व हमें भगवान श्रीकृष्ण के इस धरती पर अवतार लेने के उद्देश्य और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों की याद दिलाता है।

सांस्कृतिक महत्व:-

श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएँ भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी माखन चुराने की कहानियाँ, रासलीला, और गोपियों के साथ उनके संबंध भारतीय लोककथाओं और भजनों में प्रमुखता से वर्णित हैं। जन्माष्टमी के दिन इन लीलाओं का मंचन, भजन-कीर्तन, और झांकियों का आयोजन होता है, जो सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखते हैं।

 आध्यात्मिक महत्व :-

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भक्तजन व्रत और उपवास रखते हैं, जो आत्म-संयम और आत्म-शुद्धि का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन के माध्यम से भक्तजन भगवान के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करते हैं। यह दिन आत्मा की पवित्रता, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

सामाजिक महत्व:-

श्री कृष्ण जन्माष्टमी समाज में एकता और सामूहिकता का संदेश भी देती है। इस दिन मंदिरों और घरों में सामूहिक पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण का आयोजन होता है, जो समाज के सभी वर्गों को एकत्रित करता है। यह पर्व सामूहिकता और भाईचारे की भावना को प्रबल करता है।

H2- श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्रातः जल्दी उठ कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करे अपनी श्रद्धानुसार  निर्जला उपवास रख सकते है या फलाहार ग्रहण कर सकते है । यह उपवास भगवान के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। 

यदि आपके घर के मंदिर मे लड्डू गोपाल है तो उनको स्नान कराएं। नए कपड़े पहना कर उनका श्रृंगार करे उनको झूले मे बैठा दे। उन्हे मक्खन मिश्री तथा पंचामृत का भोग लगाएं।

H2 – श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि 

भगवान श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि 12 बजे हुआ था इसलिए जन्म की रात्रि में होती है। रात्रि पूजन के लिया लड्डू गोपाल अभिषेक किया जाता है जिसके लिए दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल से उनका अभिषेक करे( इस अभिषेक की सामाग्री को प्रसाद स्वरूप पूजा के बाद ग्रहण करे)। उसके बाद किसी साफ कपड़े से उनको साफ कर और नए वस्त्र पहनाए। उसके पश्चात श्री कृष्ण का आभूषण से श्रृंगार करे और उन्हे झूले पर विराजमान कराए । भगवान को चंदन लगाएं तथा पीला पुष्प अर्पित करे। कान्हा जी को माखन बहुत प्रिय है तो उनको माखन मिश्री या मेवे की खीर का भोग लगाए , इत्र और फल भी चढ़ाए। धूप और घी की बत्ती की साथ भगवान श्री कृष्ण की पूरी श्रद्धा के साथ आरती करे और भगवान का आशिर्वाद प्राप्त करे।

 श्री कृष्ण भजन – कीर्तन 

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के भजन – कीर्तन का भी बहुत विशेष महत्व है ।


1.अच्युतम केशवम

2. गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो

3. यशोमती मैया से बोले नंदलाला 

https://www.youtube.com/watch?v=8ubnEH2ji3s

4. श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष आयोजन 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मथुरा, वृंदावन और देश के विभिन्न हिस्सों में विशेष आयोजन होते हैं। इनमें झांकियां सजाई जाती हैं, दही-हांडी का आयोजन किया जाता है और रात में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भक्तजन मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं।

 FAQs – श्री कृष्ण जन्माष्टमी से जुड़े सवाल और जवाब 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी क्या है?

श्री कृष्ण जन्माष्टमी एक हिंदू त्योहार है जो भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण के जन्म के  रूप मे मनाता है।

2024 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाती है?

 श्री कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू चंद्र कैलेंडर के आधार पर 26 अगस्त 2024 , सोमवार को मनाई जाएगी। 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व क्या है?

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का प्रतीक है, जो अपनी शिक्षाओं और दिव्य लीलाओं के लिए पूजनीय हैं जो मानवता को धार्मिकता की ओर ले जाते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाते हैं?

 भक्त उपवास करके, भक्ति गीत गाकर, कृष्ण के बचपन (रास लीला) का अभिनय करके और आधी रात की पूजा में भाग लेकर जन्माष्टमी मनाते है।

जन्माष्टमी के दौरान तैयार किए जाने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थ क्या हैं?

 पारंपरिक खाद्य पदार्थों में माखन (मक्खन),मिश्री, खीर , पंजीरी, और लड्डू और पेड़ा जैसी विभिन्न मिठाइयाँ शामिल हैं। 

कृष्ण जन्माष्टमी के कुछ लोकप्रियअनुष्ठान क्या हैं? 

लोकप्रिय अनुष्ठानों में दही हांडी शामिल है, जहां टीमें दही से भरे मिट्टी के बर्तन को तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाती हैं, जो मक्खन के प्रति कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है।

 सजावट कैसे करें घर पर कृष्ण जन्माष्टमी के लिए?

उत्सव के हिस्से के रूप में घरों को फूलों, रंगोलियों, शिशु कृष्ण के लिए झूलों और छोटे पालनों से सजाया जाता है तथा झाकियां तैयार की जाती है।

कुछ कृष्ण जन्माष्टमी गीत और भजन क्या हैं?

 “अच्युतम केशवम,” “गोविंद बोलो हरि गोपाल” जैसे भक्ति गीत बोलो,” और ”यशोमती मैया से बोले नंदलाला” आमतौर पर जन्माष्टमी के दौरान गाए जाते हैं।

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