नवरात्रि देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित एक पवित्र त्योहार है, और इसकी शुरुआत कलश स्थापना (घटस्थापना) के महत्वपूर्ण अनुष्ठान से होती है। यह अनुष्ठान नवरात्रि उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है और माना जाता है कि यह देवी दुर्गा को घर में आमंत्रित करता है, जो पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है। आइए जानते है नवरात्रि कब से शुरू है?और कलश स्थापना कैसे करें?
हिंदू पंचांग के अनुसार, 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। सालभर में कुल 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व काफी ज्यादा होता है। माना जाता है कि नवरात्रि में माता की पूजा-अर्चना करने से देवी दुर्गा की खास कृपा होती है।नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है, जिसे नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि का दसवां दिन विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है।पूरे भारत में शारदीय नवरात्रि बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नाम की झांकियां भी निकाली जाती हैं। नवरात्रि के पहले दिन कलशस्थापना की जाती है जिसे घटस्थापना भी कहा जाता है।

शारदीय नवरात्रि की तिथि और शुभ मुहूर्त (Shardiya Navratri 2024 Tithi)
- 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार मां शैलपुत्री (पहला दिन) प्रतिपदा तिथि
- 4 अक्टूबर 2024, शुक्रवार मां ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) द्वितीया तिथि
- 5 अक्टूबर 2024, शनिवार मां चंद्रघंटा (तीसरा दिन) तृतीया तिथि
- 6 अक्टूबर 2024, रविवार मां कुष्मांडा (चौथा दिन) चतुर्थी तिथि
- 7 अक्टूबर 2024, सोमवार मां स्कंदमाता (पांचवा दिन) पंचमी तिथि
- 8 अक्टूबर 2024, मंगलवार मां कात्यायनी (छठा दिन) षष्ठी तिथि
- 9 अक्टूबर 2024, बुधवार मां कालरात्रि (सातवां दिन) सप्तमी तिथि
- 10 अक्टूबर 2024, गुरुवार मां महागौरी (आठवां दिन) दुर्गा अष्टमी
- 11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार महानवमी, (नौवां दिन) शरद नवरात्र व्रत पारण
- 12 अक्टूबर 2024, शनिवार मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)
नवरात्रि पूजा और कलश स्थापना की विधि
1. शुभ मुहूर्त : कलश स्थापना नवरात्रि के प्रथम दिन प्रतिपदा को अवश्य करनी चाहिए। पंचांग के अनुसार, 3 अक्टूबर को घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 15 मिनट से लेकर 7 बजकर 22 मिनट तक होगा। घटस्थापना के लिए कुल 1 घंटा 06 मिनट का समय मिलेगा। इसके अलावा, घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त में भी किया जा सकता है। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा, जिसके लिए 47 मिनट का समय मिलेगा।
2. सामग्री इकट्ठा करना (आवश्यक वस्तुएं):
कलश (बर्तन): तांबे या मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करें। यह ब्रह्मांड और देवी दुर्गा की उपस्थिति का प्रतीक है।
जल: कलश को स्वच्छ, विशेषकर गंगा जल से भरें, जो जीवन और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है।
सिक्का: कलश के अंदर समृद्धि का प्रतीक चांदी या तांबे का सिक्का रखें।
आम के पत्ते: कलश के गले में 5 आम के पत्ते रखें। ये उर्वरता, विकास और सुरक्षा का प्रतीक हैं।
नारियल: ताजा नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर (शुभ माना जाता है) लाल धागे से बांधें। इसे कलश के ऊपर रखें.
चावल (अक्षत): मां दुर्गा के दिव्य आशीर्वाद का आह्वान करने के लिए चावल के दानों को कलश के अंदर रखा जाता है और पूजा के दौरान चढ़ाया जाता है।
रेत/मिट्टी: कभी-कभी, नौ दिनों के दौरान बढ़ने के लिए कलश के चारों ओर जौ के बीज या मिट्टी रखी जाती है, जो समृद्धि और विकास का प्रतीक है।
अन्य वस्तुएँ: फूल, सिन्दूर (कुमकुम), लाल धागा (मौली), कपूर, अगरबत्ती (अगरबत्ती), और एक दीया (तेल का दीपक)।
3. पूजा स्थल तैयार करना: पूजा क्षेत्र को साफ और शुद्ध करें। स्वच्छता और पवित्रता बनाए रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा घर में आती हैं। एक रंगोली बनाएं या चावल के एक छोटे ढेर का उपयोग करें जिस पर कलश रखा जाएगा। क्षेत्र को ताजे फूलों और दीये से सजाएं।
4. कलश स्थापना (कलश स्थापना):
चरण 1: पूजा क्षेत्र के आधार पर एक पान का पत्ता रखकर शुरुआत करें, जहां आप कलश स्थापित करेंगे।
चरण 2: कलश को पानी से भरें (यदि उपलब्ध हो तो गंगा जल डालें)। कलश के अंदर सिक्का, चावल और कुछ फूल रखें।
चरण 3: कलश की गर्दन के चारों ओर आम के पत्तों को व्यवस्थित करें।
चरण 4: नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें। नारियल भगवान गणेश का प्रतिनिधित्व करता है, और लाल कपड़ा पवित्रता और शक्ति का प्रतीक है।
चरण 5: सुरक्षा और आशीर्वाद के लिए कलश के चारों ओर लाल धागा (मौली) बांधें।
5. देवता का आह्वान (प्राण प्रतिष्ठा): एक बार कलश स्थापित हो जाने पर, कलश में देवी दुर्गा की उपस्थिति का आह्वान करने के लिए मंत्रों का जाप करें। आप सरल दुर्गा मंत्रों का जाप कर सकते हैं
जैसे:
ॐ दुं दुर्गायै नमः (ॐ दुं दुर्गायै नमः)
इसके अलावा, पूजा की शुरुआत में यह कहकर भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करें:
ॐ गं गणपतये नमः (ॐ गं गणपतये नमः) इसके बाद देवी दुर्गा को कलश में निवास करने के लिए आमंत्रित करें और अगले नौ दिनों तक आपकी प्रार्थना स्वीकार करें।
6. नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा अनुष्ठान: दैनिक प्रसाद: नवरात्रि के हर दिन, कलश और देवता को ताजे फूल, फल, मिठाई और नारियल चढ़ाएं। दिन में दो बार, एक बार सुबह और एक बार शाम को दीया जलाएं। देवी दुर्गा के नौ रूपों का सम्मान करने के लिए दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती जैसी प्रार्थनाएँ करें या केवल दुर्गा मंत्रों का जाप करें। दैवीय सुरक्षा का आह्वान करने के लिए कलश के चारों ओर और अपने ऊपर पवित्र जल छिड़कें।
7. अखण्ड ज्योति को बनाये रखना: कई भक्त अखंड ज्योति (अनन्त लौ) जलाते हैं, जिसे नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक जलना चाहिए। यह लौ कलश के पास रखी जाती है और बुझनी नहीं चाहिए।
8. आरती करना: प्रतिदिन कपूर की लौ या घी के दीये से दुर्गा आरती करें। देवी की स्तुति करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए आरती गीत गाएं।
9.नवरात्रि पूजा का समापन (विजयादशमी): नवरात्रि के आखिरी दिन (विजयादशमी) पर देवी को विदाई देने के लिए विशेष आरती और पूजा करें। अनुष्ठान पूरा होने के बाद कलश को एक जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है, जो देवता के प्रकृति में वापस विसर्जन का प्रतीक है।
10. व्रत एवं भक्ति : कई भक्त नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान उपवास रखते हैं। यह पूर्ण उपवास या आंशिक उपवास हो सकता है जिसमें केवल फल और कुछ अनुमत खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है। पूरे नवरात्रि में प्रार्थना, ध्यान और भक्ति पर ध्यान दें।
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