भगवान शिव और शनिदेव की कथा

भगवान शिव और शनिदेव की कथा: शनिदेव को क्यों दी गई थी 19 वर्षों तक सजा?

क्या आपको भगवान शिव और शनिदेव की कथा के बारे मे पता है? भगवान शिव ने शनिदेव को क्यों दी गई थी 19 वर्षों तक सजा? अगर नहीं तो आइये जानते है।शनिदेव का नाम सुनते ही अधिकांश लोगों के मन में उनके कुप्रभाव और प्रकोप का खौ़फ पैदा हो जाता है। लोग शनिदेव को रुष्ट नहीं करना चाहते और उन्हें प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय ढूंढते हैं।

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शनिदेव, जो कि कर्मों के फलदाता माने जाते हैं, व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्मों के आधार पर परिणाम देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनिदेव को यह अधिकार कैसे मिला? उन्हें अपनी शक्ति का उपयोग करने की अनुमति देने के पीछे भगवान शिव की एक महत्वपूर्ण कथा जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं, शनिदेव को भगवान शिव ने क्यों 19 वर्षों तक पीपल के पेड़ से उल्टा लटकाया था और इस घटना का क्या महत्व है।

भगवान शिव और शनिदेव की कथा:शनिदेव का अहंकार और भगवान शिव का न्याय

कथाओं के अनुसार, एक समय सूर्यदेव ने अपने सभी पुत्रों को उनकी योग्यता के आधार पर विभिन्न लोकों का अधिकार सौंपा था। हालांकि, शनिदेव, जो अपने भीतर छिपे अहंकार और शक्ति के मद में चूर थे, इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हुए। वे अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए बाकी लोकों पर भी अपना अधिकार जमा लेना चाहते थे। शनिदेव का यह आचरण सूर्यदेव को बहुत दुखी करने वाला था। परेशान होकर, सूर्यदेव भगवान शिव के पास पहुंचे और अपने पुत्र की इस असमर्थता और उग्रता से छुटकारा पाने की प्रार्थना की।

भगवान शिव ने सूर्यदेव की सहायता करने के लिए अपने गणों को शनिदेव से युद्ध करने भेजा। लेकिन शनिदेव ने सभी गणों को परास्त कर दिया। फिर भगवान शिव स्वयं शनिदेव से युद्ध करने के लिए आए। शनिदेव ने भगवान शिव पर अपनी मारक दृष्टि डाली, लेकिन भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर शनिदेव के अहंकार को चूर-चूर कर दिया।

19 वर्षों तक पीपल के पेड़ से उल्टा लटकाना

भगवान शिव ने शनिदेव को एक बड़ी सजा दी – 19 वर्षों तक पीपल के पेड़ से उल्टा लटकाना। इस समय के दौरान शनिदेव ने भगवान शिव की उपासना की और उनका भव्य ध्यान किया। यह 19 वर्षों का समय शनिदेव के लिए आत्म-संयम और विनम्रता सीखने का समय था। यही कारण है कि शनिदेव की महादशा 19 वर्षों की मानी जाती है, जो उस समय के दौरान उनके द्वारा प्राप्त की गई आत्म-निर्भरता और शुद्धता का प्रतीक है।

सूर्यदेव को यह दशा देखकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने भगवान शिव से अपने पुत्र की गलती की माफी मांगी और शनिदेव को जीवनदान देने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और शनिदेव को मुक्त कर दिया। साथ ही, भगवान शिव ने शनिदेव को उनके शक्तियों का उपयोग न्यायपूर्ण तरीके से करने का आशीर्वाद दिया और उन्हें उनके सही मार्गदर्शन का रास्ता दिखाया।

शनिदेव और भगवान शिव का संबंध

भगवान शिव ने शनिदेव को अपना शिष्य बनाकर उन्हें दंडाधिकारी नियुक्त किया। शनिदेव अब भगवान शिव के आदेशों के तहत न्याय करने लगे और उन्होंने अपनी शक्तियों का सही उपयोग करना शुरू किया। यही कारण है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा की जाती है। शनिदेव न केवल भगवान शिव के प्रति अत्यधिक सम्मान रखते हैं, बल्कि उनसे डरते भी हैं। यह माना जाता है कि भगवान शिव की पूजा से शनिदेव का क्रोध शांत होता है और व्यक्ति को शनि दोष से राहत मिलती है।

निष्कर्ष

भगवान शिव और शनिदेव की कथा हमें यह सिखाती है कि हमारे कर्मों का परिणाम निश्चित होता है। शनिदेव के कुप्रभाव को भी उनके मार्गदर्शन और उनके लिए उचित मार्ग दिखाने से शांत किया जा सकता है। यह कहानी यह भी बताती है कि अहंकार से बचना चाहिए और न्याय और विनम्रता के रास्ते पर चलना चाहिए। भगवान शिव का आशीर्वाद पाने से व्यक्ति अपने जीवन में सुधार और शांति प्राप्त कर सकता है।

इसलिए, यदि आप शनि दोष से मुक्ति चाहते हैं या अपने जीवन में शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो भगवान शिव की पूजा करें, क्योंकि शनिदेव न केवल भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं, बल्कि उनके आदेशों के तहत ही काम करते हैं।

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