गणेश अथर्वशीर्ष

गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvasirsha)

गणेश अथर्वशीर्ष एक वैदिक ग्रंथ है जो अथर्ववेद का हिस्सा माना जाता है। इसमें भगवान गणेश की महिमा का वर्णन किया गया है और उन्हें सर्वोच्च देवता के रूप में स्थापित किया गया है। इस स्तोत्र में भगवान गणेश के 12 नामों, उनकी महत्ता, और उनके रूप को विस्तार से समझाया गया है।

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यह मंत्र गणेश जी के “सगुण” और “निर्गुण” रूप को व्यक्त करता है और उन्हें “ब्रह्मस्वरूप” के रूप में मान्यता देता है। इसे गणेश पूजा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।

गणेशअथर्वशीर्ष का पाठ:

।।श्री गणपति अथर्वशीर्ष।।

ॐ नमस्ते गणपतये।

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि

त्वमेव केवलं कर्ताऽसि

त्वमेव केवलं धर्ताऽसि

त्वमेव केवलं हर्ताऽसि

त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि

त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अव त्व मां। अव वक्तारं।

अव श्रोतारं। अव दातारं।

अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।

अव पश्चातात। अव पुरस्तात।

अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।

अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।

सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।

त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।

त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।

त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।

सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।

सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।

सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।

त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।

त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।

त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।

त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।

त्वं शक्तित्रयात्मक:।

त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।

त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं

रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं

वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं

ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।

अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।

तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।

गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।

अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।

नाद: संधानं। सं हितासंधि:

सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:

निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।

ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

एकदंताय विद्‍महे।

वक्रतुण्डाय धीमहि।

तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।

रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।

रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।

रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।

भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।

आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।

एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।

नम: प्रमथपतये।

नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।

विघ्ननाशिने शिवसुताय।

श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।

स ब्रह्मभूयाय कल्पते।

स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।

स सर्वत: सुखमेधते।

स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।

प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।

सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।

सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।

धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।

यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।

सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।

अनेन गणपतिमभिषिंचति

स वाग्मी भवति

चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति

स विद्यावान भवति।

इत्यथर्वणवाक्यं।

ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्

न बिभेति कदाचनेति।।14।।

यो दूर्वांकुरैंर्यजति

स वैश्रवणोपमो भवति।

यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति

स मेधावान भवति।

यो मोदकसहस्रेण यजति

स वाञ्छित फलमवाप्रोति।

य: साज्यसमिद्भिर्यजति

स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा

सूर्यवर्चस्वी भवति।

सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ

वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।

महाविघ्नात्प्रमुच्यते।

महादोषात्प्रमुच्यते।

महापापात् प्रमुच्यते।

स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।

य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त।।

मंत्र

ॐ सहनाव वतु सहनो भुनक्तु सहवीर्यंकरवावहे तेजस्वी नावधितमस्तु मा विद्विषामहे।।

गणेश अथर्वशीर्ष पीडीएफ डाउनलोड 

गणेश अथर्वशीर्ष पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

गणेश अथर्वशीर्ष वीडियो

गणेश अथर्वशीर्ष पाठ की विधि

गणेश अथर्वशीर्ष एक प्रमुख वैदिक स्तोत्र है जो भगवान गणेश को समर्पित है। यह पाठ श्रद्धा, भक्ति, और ध्यान के साथ किया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है:

1. पाठ के लिए आवश्यक सामग्री:

  • भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र
  • तांबे या पीतल का पात्र जल के साथ
  • अक्षत (चावल)
  • पुष्प और दूर्वा
  • धूप और दीप
  • मोदक या लड्डू (प्रसाद के लिए)
  • आसन (स्वच्छ स्थान पर बैठने के लिए)

2. स्थान और समय:

  • स्वच्छ और शांत स्थान चुनें।
  • सूर्योदय के समय या संध्याकाल में पाठ करना शुभ माना जाता है।

3. पूजन प्रारंभ करें:

  • भगवान गणेश की प्रतिमा को पवित्र जल से स्नान कराएं।
  • प्रतिमा को पुष्प और दूर्वा चढ़ाएं।
  • धूप-दीप जलाकर भगवान गणेश का आवाहन करें।

4. गणेश अथर्वशीर्ष का उच्चारण:

  • भगवान गणेश का ध्यान करते हुए अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
  • उच्चारण स्पष्ट और श्रद्धापूर्ण होना चाहिए।
  • गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ प्रारंभ करें।

(पूरा पाठ श्रद्धा और भक्ति से करें।)

5. संपूर्ण पाठ के बाद:

  • भगवान गणेश से अपनी प्रार्थना करें।
  • मोदक या लड्डू का भोग अर्पित करें।
  • मंत्रों के साथ आरती करें।

6. प्रसाद वितरण और समापन:

  • प्रसाद वितरण करें और गणेश जी के आशीर्वाद लें।
  • ध्यानपूर्वक धन्यवाद अर्पित करें।

विशेष सुझाव:

  • पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें।
  • पाठ को श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ करें।
  • गणेश चतुर्थी या बुधवार को पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
  • अगर आपको पूरा पाठ चाहिए तो बता दें, मैं आपको उपलब्ध करवा दूंगा।

मुख्य संदेश:

1. भगवान गणेश का सर्वव्यापक रूप: यह पाठ उन्हें सृष्टि के निर्माता, पालक और संहारक के रूप में वर्णित करता है।

2. अद्वैत सिद्धांत: गणेश को ब्रह्म (सत्य) और आत्मा का साक्षात रूप कहा गया है।

3. विनायक पूजा का महत्व: यह पाठ गणेश उपासना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

गणेशअथर्वशीर्ष के लाभ:

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ भगवान गणेश की उपासना में किया जाने वाला अत्यंत प्रभावशाली और लोकप्रिय मंत्र है। इसे अथर्ववेद का अंग माना जाता है और इसे नियमित रूप से पढ़ने से आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं। इसके लाभ निम्नलिखित हैं:

1. आध्यात्मिक लाभ

बुद्धि और विवेक की वृद्धि: गणेश जी को “बुद्धि के देवता” माना जाता है। इस पाठ का नियमित जाप बुद्धि, विवेक और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

आध्यात्मिक उन्नति: यह पाठ साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति करने में सहायता करता है।

दुष्ट शक्तियों से रक्षा: गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।

मंत्र सिद्धि: इस पाठ को नियमित रूप से पढ़ने से साधक की मंत्र साधना सिद्ध होती है।

2. मानसिक लाभ

मानसिक शांति: यह पाठ तनाव और चिंता को कम करता है और मन को शांति प्रदान करता है।

सकारात्मकता का संचार: इसे सुनने या पढ़ने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

भय का नाश: गणेश जी का स्मरण सभी प्रकार के भय और अनिश्चितताओं को समाप्त करता है।

3. भौतिक लाभ

संकटों का निवारण: गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ जीवन में आने वाले सभी प्रकार के विघ्नों और बाधाओं को दूर करता है।

सफलता और समृद्धि: यह पाठ व्यक्ति को सफलता और धन-समृद्धि प्रदान करता है।

कार्य सिद्धि: किसी नए कार्य को शुरू करने से पहले इसका जाप करने से वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होता है।

4. स्वास्थ्य लाभ

आरोग्यता: गणेश जी के इस मंत्र का जाप मानसिक और शारीरिक आरोग्यता प्रदान करता है।

निरोगी शरीर: यह पाठ व्यक्ति के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो उसे रोगों से दूर रखता है।

विशेष लाभ

  • गणेश चतुर्थी और बुधवार को इसका पाठ करने से इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
  • गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ विद्यार्थियों, व्यापारियों और सभी प्रकार के साधकों के लिए अत्यंत फलदायी होता है।
  • इस प्रकार, गणेश अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और शांति प्रदान करता है।

अगर आप चाहे तो  श्री गणेश चालीसा का भी पाठ कर सकते है और अधिक लाभ के लिए यह भी हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है। 

गणेश अथर्वशीर्ष से जुड़े सवाल जवाब ( FAQs)

गणेश अथर्वशीर्ष एक महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान गणेश की स्तुति और महिमा का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ से जुड़े कुछ सामान्य सवाल-जवाब निम्नलिखित हैं:

1. गणेश अथर्वशीर्ष क्या है?

गणेश अथर्वशीर्ष अथर्ववेद का हिस्सा है, जिसमें भगवान गणेश को ब्रह्मांड के मूल और सर्वव्यापी देवता के रूप में वर्णित किया गया है। इसे गणपति उपनिषद भी कहा जाता है।

2. गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ क्यों किया जाता है?

इसका पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने, विघ्नों को दूर करने और जीवन में सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।

3. गणेश अथर्वशीर्ष में भगवान गणेश का कौन सा स्वरूप वर्णित है?

इस ग्रंथ में भगवान गणेश को “प्रणव” (ॐ) के साथ जोड़ा गया है और उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के रूप में देखा गया है। उन्हें अद्वैत सत्य (एकमात्र सत्य) का प्रतीक माना गया है।

4. इसका पाठ कब करना चाहिए?

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ शुभ कार्यों से पहले, चतुर्थी तिथि, या दैनिक पूजा में सुबह-सुबह किया जा सकता है। गणेश चतुर्थी के दिन इसका विशेष महत्व होता है।

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